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23 Feb 2022 · 2 min read

जीवन के मोड़

जीवन के मोड़
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अगर हम जीवन पर विचार करें तो महसूस होगा कि थोड़े – थोड़े समय बाद हमारे जीवन के परिदृश्य पूरी तरह बदलते रहते हैं । बचपन में सभी के जीवन की परिभाषा मुख्य रूप से उनके दादी बाबा, नाना नानी आदि हुआ करते हैं , लेकिन युवावस्था तक आते-आते वे संसार से चले जाते हैं । केवल इतना ही नहीं प्रौढ़ावस्था आते आते व्यक्ति के माता और पिता तथा उसकी अगली पीढ़ी के प्रायः सभी लोग एक एक करके इस संसार से विदा लेने लगते हैं और सहसा एक दिन व्यक्ति को लगता है कि अरे ! अब मैं भी पोते पोतियो वाला हो गया हूं और अब मेरी गिनती भी बुजुर्गों में है !
यह जीवन के परिदृश्य में आने वाले बड़े बदलाव होते हैं । व्यक्ति की भूमिकाएं बदल जाती है।
जीवन में और भी बहुत कुछ घटित होता है । शरीर के साथ बड़ी-बड़ी समस्याएं आती हैं । जो व्यक्ति युवावस्था तक बहुत अच्छे शरीर के स्वामी होते हैं ,वह भी बुढ़ापे की दहलीज पर खड़े होकर विचार करते हैं तो पाते हैं कि उनके शरीर में वह चुस्ती- फुर्ती नहीं रही । अनेक व्यक्ति ऐसी शारीरिक बीमारियों के शिकार हो जाते हैं कि उसे केवल दुखद स्थिति ही कहा जा सकता है। आप चारों ओर दृष्टिपात करें तो पाएंगे कि ऐसे व्यक्ति हैं, जिनकी दोनों आंखों से कुछ भी दिखाई नहीं देता । ऐसे व्यक्ति हैं जिनकी कानों की सुनने की शक्ति चली गई है। ऐसे लोग भी हैं जो अपने पैरों से एक कदम चलना तो दूर की बात रही ,अपने पैरों पर खड़े भी नहीं हो सकते। न जाने कितने लोगों को हृदय संबंधी गंभीर बीमारियां हो जाती हैं। बहुतों के गुर्दे खराब हो जाते हैं, जिन्हें डायलिसिस पर लंबे समय तक चलना पड़ता है। भूलने की बीमारी धीरे धीरे आम होती जा रही है । यानी कुल मिलाकर व्यक्ति के जीवन में उसके शरीर की स्थितियां बदलती रहती हैं । शरीर एक – सा नहीं रहता।
कई बार जीवन ऐसे मोड़ पर ले जाकर खड़ा कर देता है , जहां राजमहलों में राजसी सुखों के साथ रहने वाले व्यक्ति अपने जीवन का अंतिम समय झोपड़ियों में दरिद्रता के साथ बिताने के लिए अभिशप्त हो जाते हैं।
देखा जाए तो मनुष्य का जीवन पाल वाली एक ऐसी नौका के समान है, जो हवा के साथ चलती है और जिधर हवाएं ले जाएं, उधर चली जाती है। जैसे नाव पर किसी का बस नहीं होता, ठीक वैसे ही मनुष्य का जीवन है । वह पूरी तरह भाग्य के हाथों में है। जीवन के मोड़ उसे कहां ले जाएं ,कोई कुछ नहीं कह सकता। कुछ दोहों से अपनी बात समाप्त करूंगा :-
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भाग्य हमेशा रच रहा, जीवन के नव मोड़
बूढ़ापन बाकी रहा , गुणा – भाग का जोड़
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किसे पता ले जाएगा,कब जीवन किस ओर
बचपन यौवन ले गया , जैसे कोई चोर
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राजमहल मिलता कभी , झोपड़ियों में वास
उठापटक कब क्या चले,क्या किसको आभास
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लेखक :रवि प्रकाश, बाजार सर्राफा,
रामपुर उत्तर प्रदेश, मोबाइल 99976 15451

Language: Hindi
Tag: लेख
1 Comment · 350 Views
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