जीवन के पैरों में चप्पलें
जीवन के पैरों में चप्पलें
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जीवन के पैरों में नई चप्पलों का
लग्न मण्डप मे अग्नि कुंड के फेरे ले,
वचनों मे बंधते ही उदघाटन होता।
रोते मुस्काते अनजाने सहर्ष
नव वधु का होता गृह प्रवेश,
तज के घर भैय्या मां पापा
मन बेटी का उद्वेलित होता।
वो कहती प्रिय जी मै गुडिया
प्रेम मधुर अनजानों मे,
नई नवेली पर लगा साथ
बरसों का, वो मेरी मै उनका।
बगिया में नई कली खिली
गूजी घर आंगन किलकारी,
यूं ही जब अन्य पुष्प खिले
मन हुआ तृप्त बाजे मृदंग।
चप्पलें अभी नयी सी है
चलता चल राही ले उमंग,
सपने लक्ष्य हौसलों संग
सास नन्द से अनबन को
उसने साधा, की जुबां बंद।
शिक्षा दीक्षा पर बच्चों की
तकरार हुई मनुहार हुई,
प्रभु आशीष लगन परिश्रम
सपने कुछ साकार हुए।
शेष विशेष गर न हुए तो भी
निर्विकार निराकार निराधार
कुछ तो आकार हुए।
अपने सपने अपना जीवन
आओ कुछ मिलकर बात करे,
निर्जल व्रत जिम्मेदारी जाने क्या-क्या
चलो इससे कुछ उन्मुक्त करें।
विदेश नहीं पर देश सफर,
हिम-सागर है याद मुझे
मिल न सका पा लें वो
ऐसा कुछ उपचार करे।
चप्पलें घिसी कुछ ढीली
है आश, साथ अंत तक दे जायें,
हा ! ऐसा हो न सका
रोग या इलाज कौन जिम्मेदार
एक चप्पल टूट गई।
गुरू जी कहते चप्पल के जोडे में
कोई एक चप्पल पहले टूटती
ये आंसू उनके हक के है
मत रोको बह जाने दो,
हो सकता है कर्म फल
सहजता से स्वीकार करो।
स्वरचित मौलिक सर्वाधिकार सुरक्षित
अश्वनी कुमार जायसवाल कानपुर 9044134297
छोटी को समर्पित
प्रतियोगिता प्रतिभागी