जीवन के दिन रात
भाई मेरे बन गए, तब से अतिथि समान ।
जबसे उनके हो गए, अपने अलग मकान।।
एक छोर पर ख्वाहिशें ,.. दूजे पर औकात!
जिसमे फँस कर रह गये,जीवन के दिन रात! !
आएेंगे हद मे कई, निश्चित ही कुछ यार!
किया दुश्मनों का अगर,बेनकाब रुखसार ! !
रमेश शर्मा.