जीवन के दिन थोड़े
अहम भले हो लाख करोड़ों,
पर औकात शून्य से भी कम।
यह गिनती नर समझ न पाया,
इस कारण सहता है गम।
सन्त कबीरा वचन सुनाया,
ज्यादा मत तू चुलबुला।
बस इतना अस्तितव है तेरा,
ज्यों पानी का बुलबुला।
चंदा के संग टिम टिम करते,
तारे रजनी भर इतरात।
सब विलुप्त हो जाते पल में,
जब भी हो जाता प्रभात।
मद के कारण कुल संग मिट गया,
सब तप पूण्य गवांता।
रावण में यदि अहम न होता,
देव तुल्य पूजा पाता।
करें विचार अहम को त्यागें,
हरि से नाता जोड़े।
जो दिखता सब मिट जायेगा,
जीवन के दिन थोड़े।
-सतीश सृजन, लखनऊ.