” जीवन की सीख “
डॉ लक्ष्मण झा ” परिमल ”
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लिवास बदला
भेष बदला
चाल -ढाल बदल डाला ,
हाथ में मोबाएल है,
इन्टरनेट का साथ है ,
फिर क्या बात है ?
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मर्यादा रख ताख पर,
घूमते हैं रातभर,
हो नहीं रहा फिकर,
देखले कोई इधर,
आज कैसी चाह है,
दिन है या रात है ?
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पापा तो रहते नहीं ,
मम्मी को फुर्सत नहीं !
संस्कार तो मिलते नहीं
प्रेम सुमन खिलते नहीं !
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कुटिलता का समावेश देखो ,
और कैसे हम कहें,
हीनता कैसे सहें ?
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कहते सुना मैंने सदा ,
वक्त मिलता है नहीं ,
कौन करता घर में मेहनत,
गैस कभी जलता नहीं !
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फ़ास्ट फ़ूड का दौर है ,
पिजा बरगर का होढ़ है ,
फिर कहाँ चूल्हा जले ,
पार्टियो मे दिल लगे !
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आज तुमको खोजना है ,
प्यार के एहसास को ,
सींच दो तुमभी ऋदयसे ,
मरुभूमि के उद्यान को !
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कार्य के पथ पर हमेशा ,
तुम सजग बनते रहो ,
छल कपट से दूर रहकर ,
प्रेम से बढ़ते रहो !
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बाँट दो सर्वस्व अपना ,
कलुषित ऋदय को त्याग दो ,
राह में कोई मिले ,
तुम उसे बस प्यार दो !
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प्यार जो दौगे सभी को ,
संस्कार जो दौगे सभीको ,
इसका फल मिलता रहेगा ,
प्यार सब करता रहेगा !!!!!!
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डॉ लक्ष्मण झा ” परिमल ”
साउंड हेल्थ क्लिनिक
डॉक्टर’स लेन
दुमका
झारखंड
भारत