Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
20 Apr 2021 · 1 min read

“जीवन की वास्तविकता”

मन मलिन हो गए हैं सबके, सबके मन में स्वार्थ है ।
सब अपना- अपना सोच रहे, अब रहा नही परमार्थ है ।।
जीवन की देख विषम घटनाएं, कैसे अब मैं धीर धरूँ ।
अंतर्मन में जो द्वंद उठा, मैं कैसे इसको शांत करूँ।।

निज स्वार्थ सिद्धि में सिमट गई, वसुधैव कुटुम्बकम की परिभाषा।
साथ मे छिनती चली गयी, जीवन की हर एक अभिलाषा।।
प्रतिदिन पथ में ललचाई, नजरों से हमें देखते हैं ।
वो बच्चे जिनका प्यार बचपन , निष्ठुर जीवन ने निगल लिया।।
हैं हम सब इसके उत्तरदायी, मैं कैसे खुद को माफ करूँ ।
अंतर्मन में जो द्वंद उठा, मैं कैसे इसको शांत करूँ।।

अपनी खुशियों को त्याग के जिसने, पूरी की हर अभिलाषा ।
साथ मे खेले, साथ मे कूदे, जीवन को दी एक परिभाषा।।
रहते हैं हम महलों में, और स्टेटस भी है बड़ा-बड़ा।
जो हैं जन्मदात्री और जीवनदाता, एक पल में उनको भुला दिया।।
विकृत हुए सभ्य समाज का, कैसे मैं प्रतिकार करूँ ।
अंतर्मन में जो द्वंद उठा, मैं कैसे इसको शांत करूँ।।

जैसे – जैसे बड़े हुए हम, अपनापन सब भूल गए ।
बचपन के मित्रों की टोली, व्हाट्सएप में सब झूल गए।।
पास – पड़ोसी और मित्र मंडली, की दुनिया अब है सिमट गयी।
अपनेपन की परिभाषा, बस चारदीवारी में लिपट गयी ।।
हम सब के दूषित मन को अब मैं, कैसे करके स्वच्छ करूँ ।
अंतर्मन में जो द्वंद उठा, मैं कैसे इसको शांत करूँ।।

अमित गुप्ता
शाहजहाँपुर (उत्तर प्रदेश)

Language: Hindi
1 Like · 2 Comments · 400 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
वो शिकायत भी मुझसे करता है
वो शिकायत भी मुझसे करता है
Shweta Soni
विचार
विचार
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
लघुकथा - एक रुपया
लघुकथा - एक रुपया
अशोक कुमार ढोरिया
परिवार
परिवार
Neeraj Agarwal
ଅତିଥି ର ବାସ୍ତବତା
ଅତିଥି ର ବାସ୍ତବତା
Bidyadhar Mantry
नाजुक देह में ज्वाला पनपे
नाजुक देह में ज्वाला पनपे
कवि दीपक बवेजा
वक्त बदलते ही चूर- चूर हो जाता है,
वक्त बदलते ही चूर- चूर हो जाता है,
सिद्धार्थ गोरखपुरी
पुस्तक समीक्षा- उपन्यास विपश्यना ( डॉ इंदिरा दांगी)
पुस्तक समीक्षा- उपन्यास विपश्यना ( डॉ इंदिरा दांगी)
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
बौद्ध धर्म - एक विस्तृत विवेचना
बौद्ध धर्म - एक विस्तृत विवेचना
Shyam Sundar Subramanian
जीवन में कम से कम एक ऐसा दोस्त जरूर होना चाहिए ,जिससे गर सप्
जीवन में कम से कम एक ऐसा दोस्त जरूर होना चाहिए ,जिससे गर सप्
ruby kumari
- वह मूल्यवान धन -
- वह मूल्यवान धन -
Raju Gajbhiye
..........अकेला ही.......
..........अकेला ही.......
Naushaba Suriya
प्रेम की तलाश में सिला नही मिला
प्रेम की तलाश में सिला नही मिला
Er. Sanjay Shrivastava
जय श्रीराम हो-जय श्रीराम हो।
जय श्रीराम हो-जय श्रीराम हो।
manjula chauhan
आलाप
आलाप
Punam Pande
अहसास
अहसास
Dr Parveen Thakur
सब दिन होते नहीं समान
सब दिन होते नहीं समान
जगदीश लववंशी
नारी शिक्षा से कांपता धर्म
नारी शिक्षा से कांपता धर्म
Shekhar Chandra Mitra
#जय_सियाराम
#जय_सियाराम
*Author प्रणय प्रभात*
"फिकर से जंग"
Dr. Kishan tandon kranti
हमारी राष्ट्रभाषा हिन्दी
हमारी राष्ट्रभाषा हिन्दी
Mukesh Kumar Sonkar
तू रुकना नहीं,तू थकना नहीं,तू हारना नहीं,तू मारना नहीं
तू रुकना नहीं,तू थकना नहीं,तू हारना नहीं,तू मारना नहीं
पूर्वार्थ
तुम मेरी
तुम मेरी
हिमांशु Kulshrestha
बेकसूर तुम हो
बेकसूर तुम हो
SUNIL kumar
2642.पूर्णिका
2642.पूर्णिका
Dr.Khedu Bharti
🌷🌷  *
🌷🌷 *"स्कंदमाता"*🌷🌷
Shashi kala vyas
*पत्नी माँ भी है, पत्नी ही प्रेयसी है (गीतिका)*
*पत्नी माँ भी है, पत्नी ही प्रेयसी है (गीतिका)*
Ravi Prakash
पुत्र एवं जननी
पुत्र एवं जननी
रिपुदमन झा "पिनाकी"
अभिनेता बनना है
अभिनेता बनना है
Jitendra kumar
किताबें पूछती है
किताबें पूछती है
Surinder blackpen
Loading...