जीवन की रंगीनियत
जीवन की रंगीनियत बदल ना जाए ,
ये हसीं शाम कहीं ढल ना जाए |
मयखाने से निकले बहके हुए कदम,
दुनिया के रस्मो रिवाज में संभल न जाए |
ज़मीनी हक़ीक़त से मुख मोड हुए सपने ,
किसी बेबफ़ाई से टूटा दिल बिखर ना पाये ।
शराब बयाँ करे जिस्म की, बहकी बहकी चाल,
इन नशीली आँखों से आंसू निकल ना जाये।
बड़ी मिन्नतों से मिले हैं चार दिन ,
आरज़ू और जुस्तजू में कही निकल ना जाये ।
दरख़्त सा जीवन, गहरायी में बँधी है जड़े,
आँधी आए या तूफ़ान ,ये उखड़ ना पाये ।
आसमान तले बैठे, ज़मीन पर रखे हैं कदम ,
‘असीमित’ ख्वाहिशों में भी उसूल बदल ना पाये ।