जीवन की फुलवारी में
जीवन की फुलवारी में तुम
तितली बन कर आयी हो।
खिली खिली है बगिया जबसे
रंग अपने बिखरायी हो।
ये सूरज पहले भी उगता था,
सुनहरी छटा बिखरती न थी
शामें गुलाबी गुलाबी होकर–
ऐसे तो कभी संवरती न थी
प्रातः की तुम पहली किरण,
चांदनी सी जगमगाई हो।
खिली खिली है बगिया जबसे
रंग अपने बिखरायी हो।
मुस्कुराता पहले भी था मैं
पर खुशनुमा हर इक पल न था
गम में गले लगाकर मुझे
यूँ देता कोई सम्बल न था
गम को सारे दूर भगाकर
खुशियां बटोर तुम लायी हो।
खिली खिली है बगिया जबसे
रंग अपने बिखरायी हो।
थे रिश्ते नाते सभी मगर
साथ कोई हमदम न था
बदलती ऋतुएं थी मगर
बदलता कभी मौसम न था
तुम ही मधुमास, तुम वर्षा
नेह की बुँदे बरसायी हो।
खिली खिली है बगिया जबसे
रंग अपने बिखरायी हो।
गणेश नाथ तिवारी”विनायक”