जीवन की उत्कण्ठाऐं
कल्पना से शुरु किया,
कामनाओं से होकर गुजरा,
एवंम् कुशुम पर आकर ठहर गया ।
और फिर,
यहीं से शुरु हुई एक उलझन,
प्रथम परिणय,
प्रेम पास,
और आलिंगन,
कुछ मिठास,
और कुछ कडवापन।
कभी दो बदन,
एक मन,
और कभी अनबन,
हाय,
कैसा है यह बन्धन,
कभी बेगानगी,
और कभी अपना पन।
कभी मरने की चाह,
कभी जीने का मन।