जीवन की आपबीती
इस जीवन को जीते – जीते , ऐसे पल भी आ जाते है ।
जब अपनों से ही , आपबीती छुपाने लग जाते हैं ।।
लगता हैं, सुखो की स्मृतियां के बिखरे धांगो को बुन डालू ।
कुछ अपनी आपबीती , अपनों से सुना डालू ।।
तन खोया – खोया सा लगता हैं ।
कुछ खोया सा मिल जाता है ।।
मेरी भी सीमाएं है , कितना मै भी कह पाती ।
जितना भी कह डालू , उलझी – उलझी सी रह जाती ।।
यूं ही इस दिल में , बेचैनी से उढती है ।
मेरी भी सपनों की दुनिया , कहीं ना कहीं लुटती है ।।
जो भी आया था जीवन में , अकेला ही छोड़ गया ।
ढलती हुई इस दुनिया , कौन किसका हो गया ।।
जो भी इस जीवन में होगा , चलते – चलते सहना होगा ।
लडने बैठूंगी तो , जीवन को जीना मुश्किल होंगा ।।