जीवन की अवस्थाएँ…
शैशवावस्था की हँसी,
देख दौड़े सभी,
कोई चाहे गोद में उठाना,
तो कोई प्यार से सहलाना ।
बाल्यवस्था की शरारतें ,
जिससे आए दिन आए शिकायतें ।
माँ-बाप का दुर्भर जीना,
हर दिन का यहीं है रोना ।
बच्चें पर डाँट-फटकार का कोई असर न होना ।
किशोरावस्था की मस्ती,
मित्रों की नई कश्ती ।
दिमाग में गहराता विचारों का घमासान,
जिसमें मिलता है कुछ को ही आसमान ।
युवावस्था का प्यार,
अच्छे-अच्छों को करें बेकार ।
हर दिन रोज़गार की तलाश ,
न मिलने पर करें उसे हताश ।
प्रौढ़ावस्था की सफ़ेदी,
दे उसे मुस्तैदी ।
रफ्तार भरी जिंदगी,
करें वो ईश्वर से बंदगी ।
जीवन का अंतिम पड़ाव,
रखें अपनों से जुड़ाव ।
प्राण पखेरू उड़ने से पहले ,
माँगे कुछ क्षण का लगाव ।
-मीनू यादव*