जीवन का सफ़र कल़म की नोंक पर चलता है
जीवन का सफ़र कल़म की नोंक पर चलता है
कब कल़म अपवित्रता की निशानी बन जाये ।
इसे रोको बहरूपिया के नये लोकतंत्र से ।
सद्कवि प्रेमदास वसु सुरेखा
जीवन का सफ़र कल़म की नोंक पर चलता है
कब कल़म अपवित्रता की निशानी बन जाये ।
इसे रोको बहरूपिया के नये लोकतंत्र से ।
सद्कवि प्रेमदास वसु सुरेखा