जीवन का एक और बसंत
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मुक्तक
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(१)
पल-क्षण, दिवस, मास बहु बीते, वर्ष एक फिर बीत गया,
खारे-मीठे अनुभव का भी, बजता नव संगीत गया।
चलते चलते जीवन पथ पर, जब नैराश्य हराने आता,
मातु शारदा कहती हैं तब, ले तू फिर से जीत गया।।
(२)
जीवन का सहचर बन अनुभव, आगे बढ़ता जाता है,
कभी सुखद पल भी देता, मायूस कभी कर जाता है।
किंतु दुःख दारुण दे चाहे, प्रसन्नता अतिशय आये,
तू ही साथी सुखद सफर का, तुझसे गहरा नाता है।।
✍️ नवीन जोशी ‘नवल’