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27 Feb 2018 · 1 min read

जीवन का अर्थ

उड़ बैठा पिंजरे का पंछी
गगन में हो उन्मुक्त उड़ा
ओर छोर न रहा किसी का
सीमाओं से मुक्त उड़ा।

मिल बैठा सूरज चन्दा से
धरती का संघर्ष गया
मलय पवन में इठलाया वह
बेचैनी का स्पर्श गया।

दुख हुआ सुख में परिणित
पीड़ा का संवाद गया
तृप्त हुआ अंतर्चेतन
हाला का कड़वा स्वाद गया।

जिस मृत्यु से जग डरता है
उस रजनी से क्या डरना
परम् शांति है,परम् मुक्ति है
स्वागत तुम उसका करना।

जीवन को भी जीना ऐसे
क्षण भंगुर है ध्यान रहे
पल पल हो आनन्दोत्सव
अंतस मे शांति दीप जले।

विपिन

Language: Hindi
437 Views
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