जीवन और रोटी (नील पदम् के दोहे)
जीवन ऐसे चल रहा, ज्यों बाजी शतरंज,
जब लगता सब ठीक है, त्यों होवे बदरंग।
दो रोटी की चोट से, पीर पोर तक होय,
मन साधे तो तन दुखे, तन साधे मन रोय।
चलती चक्की साँस की, जाने कब रुक जाय,
जोड़-घटा और गुना-भाग में, काहे समय गँवाय।
घड़ी- घड़ी क्यों कर रहा, मरने का अपराध,
जीवन ही अनमोल है, मलते रह जइयो हाथ।
चलते चलते थक गए, ले लो थोड़ा विश्राम,
एक अनवरत प्रक्रिया, ख़त्म न होते काम ।
(c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव ” नील पदम् “