जीवन और ओस कण
जीवन और ओस कण
क्षणभंगुर सा जीवन जैसे ओस का कण
दोनों का इस पल नर्तन अगले पल मरण
इक मिट्टी की काया मिट्टी में मिल जाए
दूजी हवा से उपजी हवा में ही समाए
स्वाति सीप में मोती कदली ऊपर कपूर
भुजंग मुख विष और धरा गिरे तो धूर
संगति करती परिभाषित दोनों का अंजाम
जैसी संगति वैसा होता इनका परिणाम
रेखांकन।रेखा