“जीवन एक मधुशाला”
मधुशाला है महकती .
जलता दिल अपना .
दुनिया है भौंकती .
बदबू बहुत है आती ।।
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शराब जो हैं पीते .
आबरु उड़ जाती .
दारू समझ कर पी .
हर रुग्णता मिट जाती .
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नशा मकसद नहीं पीने में .
मदहोश इतना कर जाती .
दुनिया की हर इत्र .
फीकी नज़र है आती ।।
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बात थी अल्फाज़ो की .
सदा मुख से पैदा हुये .
कुछ की भाषा भुजाऐं थी .
कुछ पेट के लिये पैदा हुये .
बाकि सब दस्तकार बचे .
(श्रेष्ठ वर्चस्व को तिरस्कारित किया).
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मधुशाला है जीवन
डॉ. महेंद्र .
गर खुद से खुदी को .
जीने का मौका मिले ?