जीवन एक गाथा(धार्मिक व्यथा)
जिंदगी एक गाथा है
धर्म ही व्यथा है.
याद नहीं व्यवस्था.
ढलती अवस्था .
बढ़ता अस्थमा.
सांँसों में अस्त-व्यस्तता.
समय में बदलाव.
सुबह रही न साँझ.
आदमी व्यस्त इतना.
लगती नहीं भूख.
मिट गई प्यास.
अनिंद्रा पास.
एकल नहीं विचार.
बढ़ते व्याभिचार.
चरम पर अत्याचार.
मत के पीछ लग्गू हैं.
ये जीवन तेरी कैसी गाथा है.
बोझ तले दबे ढोर जैसी.
लिखे गाथा
मिट जाये व्यथा
सुधार लो व्यवस्था
निर्भार रहो
जिम्मेदार बनो
लिख दो
जीवन गाथा.
डॉक्टर महेन्द्र सिंह हंस