जीवन एक खिलौना है क्या…
??? ग़ज़ल ???
या रब किस्सा सच्चा है क्या
जीवन एक खिलौना है क्या.!
नील गगन की., सैर करा दे
ऐसा कोई.., चारा है क्या.!
पूछ रही, मन की अभिलाषा
तारा कोई.., टूटा है क्या.!
दरवाज़े पर, दस्तक़ कैसी.?
देखो अल्हड़ पुरवा है क्या.!
झूठ दिखाई., देता जो सच
इन आँखों पर पर्दा है क्या.!
ये राघव की., लीला ही थी
मृग सोने का होता है क्या.!
टूटा कैसे, दिल का दर्पण.?
पत्थर कोई, फेंका है क्या.!
पूछ रही क्यों, नींद नयन से
चादर वादर तकिया है क्या.!
क्या लाये, क्या खोया तुमने
अपना और पराया,है क्या.!
दुख है तो फिर,सुख भी होगा
बेमतलब की चिंता है क्या.!
टूट गयी, रिश्तों की डोरी.?
धागा इसका कच्चा है क्या.!
संघर्षों का, नाम है’ जीना.!
जीना खेल तमाशा है क्या.!
चीख उठा है, एक “परिंदा”
देखो जाकर ज़िंदा है क्या.!
पंकज शर्मा “परिन्दा”?