जीवन एक उत्सव
वास्तव में जीवन एक उत्सव है और यह उत्सव हर पल होता रहना चाहिए। ऐसा एक भी पल भी न हो, जब हम उत्सव से वंचित हो।
हर सुबह सूरज उगता है, हमें जीवन की नयी ऊचाईयां देने के लिए, हर शाम वह अस्त होता है, ताकि सितारे हमारी रात को उत्सवों से भर सके, त्यौहार लगातार चलता रहे, हर एक दिन पुष्प हमें जीवन के रंग दिखलाते हैं लेकिन हम अक्सर इन्हें जीवन के समीप देख ही नहीं पाते, हमारा वर्तमान कामना में, जिन्दा ही मर जाता है और यही कामना हमारे हर वर्तमान को शोषण का, पीड़ा का अंतहीन समय बना देती है। हम प्रकृति की सुंदरता, पुष्पों के रंग, पेड़ों की भाषा, जंगलों का मौन देख नहीं पाते, महसूस नहीं जार पाते, जी नहीं पाते, और अस्तित्व के उत्सव् में शामिल नहीं जो पाते, जीवन त्यौहार नहीं बन पाता।
अस्तित्व के आधार में मात्र उत्सव हैं, जीवन त्यौहार है और धर्म का एक मात्र आशय यही है कि जीवन और अस्तित्व के इन गुणों से हम परिचित हो सकें, यही परिचय हमें आध्यात्मिक बनाता है। जैसे ही हम जीवन को त्यौहार के रूप में स्वीकारते हैं, उत्सव की वेदी पर हम स्वयं जीवन का श्रृंगार करते हैं, यहीं से जीवन को नकारना हम बंद कर देते हैं, स्वीकारोक्ति का जागरण होता है, और जहाँ स्वीकार्यता है वहां दुःख कैसा ? यही से जीवन में मौज की, उमंग की खोज होती है, जीवन त्यौहार बनकर अस्तित्व के साथ उत्सव में शामिल होता है, यही उत्सव हमारा आधार है।
यही से जीवन प्रतिक्षण दैवीय होता जाता है, दिव्य होता जाता है, जहाँ अब प्रतिकार करने के लिए कुछ भी नहीं, जीवन उत्सव के आधार से पवित्रता में समाहित होता जाता है। जिंदगी चलती है और उसके साथ हम चलते रहते हैं। यही साधना है, यही ध्यान है, यही अध्यात्म है।
चलें जीवन को छूने दें, अस्तित्व को आपसे जुड़ने दें,रुकें नहीं,दूर खड़े न हों, बस त्योहारों को मानते रहें, जीवन को उत्सव में शामिल करते रहें। यही से जीवन जीवन बनता है, और उत्सव कभी खत्म नहीं होता।
धन्यवाद!!
मौलिक
आभा सिंह लखनऊ उत्तर प्रदेश