Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
29 Apr 2022 · 2 min read

जीवन इनका भी है

बैठ जाती हूँ मैं जमीं पर
थक हारकर उस समय ,
जब नन्हें हाथों को देखती हूँ
हाथ फैलाएं भीख मांगते हुए ,
दर – बदर , दर – बदर।

सोचती हूँ जीवन इनका भी है ,
जो अभी ठीक से जमीं पर खड़ा भी न हुए है,
और भागने लगे पेट पालने के लिए,
इधर – उधर , इधर – उधर।

ठीक से भोजन भी इन्हें कहाँ नसीब होता है ।
कहाँ इनके तन पर कोई कपड़ा भी होता है।
नंगे पाँव ही भागते रहते है ,
यहाँ – वहाँ , यहाँ-वहाँ।

गर्मी भले ही इनको तपाती हो।
बरसात भले ही इन्हें भिगाती हो ।
भले ही ठंड इन्हें ठिठुड़ाती हो।
पर इनके कदम कहाँ रूकते हैं,
अपना पेट पालने के लिए ये
भागते, भागते और भागते ही रहते हैं।

किसी ने चंद सिक्के क्या दे दिये!
किसी से कुछ खाने का
सामान क्या मिल गया,
इनके चेहरे पर मुस्कान खिल जाता है,
ऐसे मानो उनको जन्नत मिल गया हो ।

इनको जब छोटे-मोटे खिलोने या
गुब्बारा बेचते हुए देखती हूँ तो,
एहसास होता की सब्र किस कहते हैं।
जो खिलोने से खेलने की इच्छा को,
मारकर खिलोने को बेचते है।

आते जाते न जाने कितनों की,
नजरें उन पर पड़ती है ।
पर कितने है जो उनका दर्द बाँटते हैं।
या चंद समय स्ककर उनकी
बात सुन लेते।

लेकिन एक दिन ये बच्चे भी समय से लड़ते हुए ,
अपने को मजबूत बना ही लेते हैं।
जीवन ये भी जी ही लेते है।
रोज संघर्ष करते है पर हार नहीं मानते है।

खुली आसमान को छत बनाते है,
और धरती को बिछावन,
जहाँ जगह मिल जाए ,वही सो लेते है
अफसोस इस बात का है हमें की
हम इनको भर पेट भोजन भी नही दे पाते है।

काश हम कुछ ऐसा कर पाते
इनका बचपन इन्हें जीने देते।
पेट भर भोजन और हाथ मै किताब दे पाते।
इनका बचपन इनको लोटा पाते।
काश इनका जीवन भी हम आम
बच्चों की तरह ही कर पाते ।
इनके जीवन को भी हम सँवार पाते।

~अनामिका

Language: Hindi
4 Likes · 2 Comments · 1131 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
बस यूँ ही
बस यूँ ही
Neelam Sharma
"बिना माल के पुरुष की अवसि अवज्ञा होय।
*प्रणय प्रभात*
देख के तुझे कितना सकून मुझे मिलता है
देख के तुझे कितना सकून मुझे मिलता है
Swami Ganganiya
*
*"माँ महागौरी"*
Shashi kala vyas
टूटते पत्तो की तरह हो गए हैं रिश्ते,
टूटते पत्तो की तरह हो गए हैं रिश्ते,
Anand Kumar
पितृ तर्पण
पितृ तर्पण
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
★महाराणा प्रताप★
★महाराणा प्रताप★
★ IPS KAMAL THAKUR ★
यूं इश्क़ में इतनी रवादारी भी ठीक नहीं,
यूं इश्क़ में इतनी रवादारी भी ठीक नहीं,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
ग़ज़ल (गहराइयाँ ग़ज़ल में.....)
ग़ज़ल (गहराइयाँ ग़ज़ल में.....)
डॉक्टर रागिनी
घटा घनघोर छाई है...
घटा घनघोर छाई है...
डॉ.सीमा अग्रवाल
"सावधान"
Dr. Kishan tandon kranti
बापू गाँधी
बापू गाँधी
Kavita Chouhan
यादों के अथाह में विष है , तो अमृत भी है छुपी हुई
यादों के अथाह में विष है , तो अमृत भी है छुपी हुई
Atul "Krishn"
इंसान का कोई दोष नही जो भी दोष है उसकी सोच का है वो अपने मन
इंसान का कोई दोष नही जो भी दोष है उसकी सोच का है वो अपने मन
Rj Anand Prajapati
मोहब्बत की आख़िरी हद, न कोई जान पाया,
मोहब्बत की आख़िरी हद, न कोई जान पाया,
Rituraj shivem verma
भ्रम
भ्रम
Dr.Priya Soni Khare
3659.💐 *पूर्णिका* 💐
3659.💐 *पूर्णिका* 💐
Dr.Khedu Bharti
वो मुझसे आज भी नाराज है,
वो मुझसे आज भी नाराज है,
शेखर सिंह
कलश चांदनी सिर पर छाया
कलश चांदनी सिर पर छाया
Suryakant Dwivedi
समय-सारणी की इतनी पाबंद है तूं
समय-सारणी की इतनी पाबंद है तूं
Ajit Kumar "Karn"
*जिंदगी से हर किसी को, ही असीमित प्यार है (हिंदी गजल)*
*जिंदगी से हर किसी को, ही असीमित प्यार है (हिंदी गजल)*
Ravi Prakash
शाकाहारी बने
शाकाहारी बने
Sanjay ' शून्य'
घर
घर
Slok maurya "umang"
चाँद
चाँद
ओंकार मिश्र
गुलाबी शहतूत से होंठ
गुलाबी शहतूत से होंठ
हिमांशु Kulshrestha
राष्ट्र भाषा -स्वरुप, चुनौतियां और सम्भावनायें
राष्ट्र भाषा -स्वरुप, चुनौतियां और सम्भावनायें
डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम
सोचता हूँ रोज लिखूँ कुछ नया,
सोचता हूँ रोज लिखूँ कुछ नया,
Dr. Man Mohan Krishna
"इंसान, इंसान में भगवान् ढूंढ रहे हैं ll
पूर्वार्थ
किस बात का गुमान है यारो
किस बात का गुमान है यारो
Anil Mishra Prahari
"अपना "
Yogendra Chaturwedi
Loading...