//जीवन आपका और मुकर्रर भी //
//जीवन आपका और मुकर्रर भी //
हताश नहीं इस बात से कि
पोशाक के दायरे बनाए गए
हताश इस बात से हूं कि
केवल हमारे लिए ही बना दिए गए
तुम कहते हो पारंपरिक है यह
फिर भी धोती-कुर्ते में नहीं देखा तुम्हें कभी
सारे बंधन हमारे लिए
ऊंचा मत बोलो
ज्यादा मत हंसो
ऐसे ना चलो
यह क्या पहने हो
न खोट हमारे कपड़े में
ना संस्कृति हमारी रूढ़ है
ज़रा खोलो इतिहास के पन्नों को
निकालो फेंकों इन औपनिवेशिक विचार को
यह तुम नहीं तुम्हारी अज्ञानता है
ज़रा फर्क करो
यह तो असमानता है
भोग का नशा तुम्हें है
पोशाक को दोष क्यों देते हो
अपनी बदसुलूकी को
हमारी कमी का नाम क्यों देते हो
धारणा रूढ़ ही रह जाती है
बाते भी गुम हो जाती है
कहूंगी
लहज़े के चक्कर में न परो
देवियों !
फ़िर भी
जीवन आपका और मुकर्रर भी ।।
~ कुmari कोmal