जीवनदायिनी
अक्टूबर का महीना..
सोमवार की व्यस्ततम दोपहर…………
रविवार का दूसरा दिन यानि सारी दुनिया अपने-अपने कार्य क्षेत्र के मकड़जाल में उलझी हुई………
मौसम में हल्की सर्द आहट…
सैर सपाटे के स्थल दोपहर होने के कारण सूने पड़े थे….
वह चमचमाती ब्लैक मर्सिडीज से अपने तीन वर्षीय सुपुत्र को गाड़ी को उतारते हुए इठलाई-फ
” कम बेबी! लेट्स सी दिस वाटर बाडी एंड इन्जाॅए। ”
मैम साहिबा के नख से शिख तक आभिजात्य अंदाज़ टपक रहा था।
फिर ड्राइवर से बेहद बेरुखी से – “गो एण्ड कम आफ्टर वन आर”
बेचारे ड्राइवर ने सिर झुकाकर हाथ जोड़ दिये “यस मैम सा”
थोड़ा आगे चली। एक अधेड़-सा ग्रामीण गुब्बारे वाला व्यक्ति अपने बेटे के साथ गुब्बारे बेच रहा था।
उसे देख बच्चा मचल उठा -” माॅम गुब्बारा”
“माॅम गुब्बारा” “माॅम गुब्बारा…..”
वह उसे पाने की जिद कर रहा था।
उसे कुछ तौहीन महसूस हुई – “से इन इंग्लिश”
“माॅम गुब्बारा…. हुं हुं” माॅम गुब्बारा ”
“से इन इंग्लिश” आँखें दिखाई उसने।
“माॅम गुब्बारा…. हुं हुं” माॅम गुब्बारा ”
“से इन इंग्लिश”
तड़ाक… एक चांटा और रुआँसा बच्चा बोल उठा…. “माॅम आय वाॅन्ट बलून”
गुब्बारा वाले का बेटा अंग्रेज़ी से कुछ-कुछ वाकिफ़ था -” मैम बच्चा ही तो है ”
ऐ! माइंड योर बिजनेस।”
फिर गुब्बारे की ओर इशारा -” व्हाट इज द काॅस्ट”
“टेन रुपीज ओनली” और गुब्बारे वाला पैसे लेकर दूर खड़ा हो गया ।
बच्चा गुब्बारे संग उछलने लगा।
कुछ देर बाद उस अधेड़ व्यक्ति का बेटा कहीं चला गया और गुब्बारे वाला अधेड़ अकेला खड़ा रह गया।
वह थोड़ा आगे बढ़ी। एक सुनसान कोने की तरफ बेटे के साथ तालाब की छोटी मुंडेर से झांककर बेटे को बता रही थी – “सी! हाऊ मच फिशेज इन द वाटर। ”
बच्चा कुछ ज्यादा झुक गया-“व्हेयर माॅम” और उसका बेलेन्स बिगड़ गया।
“छपाक” बालक तालाब के अंदर!!
“हेल्प… हेल्प… हेल्प….”
“हेल्प… हेल्प… हेल्प…. प्लीज़ हेल्प मी”
वह हाथ उठा कर ज़ोर-ज़ोर से पुकार रही थी। आसपास कोई नहीं था दूर बैठे हुए उस गुब्बारे वाले अधेड़ व्यक्ति के अतिरिक्त।
” हेल्प प्लीज़”
फिर दौड़ कर उस गुब्बारे वाले के पास आकर बोली -” प्लीज़ हेल्प मी”
वह बेचारा कुछ न समझा।
“आपको क्या कुछ चाहिए ”
“नहीं.. नहीं.. प्लीज़ जल्दी मेरी मदद करो। मेरा बेटा पानी में डूब गया है। उसे निकाल लो प्लीज़ “हाथ जोड़ कर सिसक पड़ी वह।
फिर तो वह अधेड़ व्यक्ति अपना सामान वहीं पटक कर तुरन्त भागा और आधे घंटे की मशक्कत के बाद बच्चे को निकाल लाया।
बच्चा बेहोश था। कार ड्राइवर को फोन किया गया। उसे जैसे ही पता लगा वह आकर उसे हास्पिटल ले गया। ढाई घंटे बाद बच्चा पूर्णतः बेहोशी से बाहर आया।
वह गुब्बारे वाले के सम्मुख आभारी भी थी और शर्मिंदा भी।
“माफ करना मेम साब! मैं आपको जल्दी मदद न दे सका क्योंकि…… ”
“मेम साब मैं तैरना तो जानता हूँ…. मगर अंग्रेज़ी नहीं…. ”
“नहीं भैया शर्मिंदा न करो”
“आज मेरी हिन्दी ने ही मेरे बेटे को नया जीवन दिया है। ”
रंजना माथुर
अजमेर (राजस्थान )
मेरी स्वरचित व मौलिक रचना
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