जीन्दगी
खुशी की राहों में बसर को तरसे
घर में रहे और घर को तरसे
यूं भी हुआ कि फेर ली नज़र जमाने ने
अपनों की एक नज़र को तरसे
रफ्ता रफ्ता कसता गया ग़म का शिकंजा
खुशी के लिए उम्र भर को तरसे
उन्की एक नज़र के लिए लूटा डाला सब कुछ
इश्क में उस बेखबर को तरसे
इश्क की गली में चर्चा भी न हुआ
न फैला उस खबर को तरसे ।