जीने लगता है मन.. पुनः
लघु स्मृतियों के
अलौकिक संसार में..
जन्म ले लेती हैं..
अनेकों वर्जित कथाएं!
आलिंगनबद्ध कर लेता है वर्तमान..
सहूलियत से..विलग आकृतियों को..
जीने लगता है मन पुनः
अस्पृश्य भावनाओं के साथ
शुभग नेह-वृत्तियों को..
स्वरचित
रश्मि लहर
लखनऊ