#जीने की राहें
संकट आया जब जीवन में, घोर अशांति फैली मन में।
खुद को कोशा ताने देकर, ग्रहण लगा था अपनेपन में।
पर बादल गैसों को धोता, कभी नहीं चंदन विष होता;
आज उदासी कैसी मन में, बहार तो आती मधुबन में।
सोचो न अनुचित विचारो तुम, निष्ठा पथ एक निहारो तुम।
सोच सही मार्ग सही पाकर, प्रतिपल मनमीत सुधारो तुम।
नदियाँ सागर में मिल जाती, कलियाँ सुरभित हो खिल जाती;
जब तक हैं साँस न हारो तुम, मन जाए जाग पुकारो तुम।
बाहर क्या होता है भूलो, अंदर की आवाज़ें छूलो।
सपनों के प्रासाद बनाकर,भूपों के झूलोंं में झूलो।
अग्नि गलाती है लोहे को, छाँव सुलाती है हारे को;
प्रेम लिए मस्ती में फूलो, जीवन है आनंद क़बूलो।
जलना छोड़ो चलना सीखो, परिस्थिति मीत बदलना सीखो।
नभ के तारे छू सकते हो, हर मौसम में ढ़लना सीखो।।
पतझड़ जाए बसंत आए, चंद्र छिपे सूरज को लाए;
धूप-छाँव-सा बनना सीखो, इंद्रधनुष-सा सजना सीखो।।
–आर.एस.प्रीतम
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