जीने का इरादा
दुखों को छोड़ जीने का इरादा कर लिया मैंने
कि परियों के शहर में अब ठिकाना कर लिया मैंने।।
ग़मों ने आज ठानी जो हराने की मुझे तो क्या
बिना उलझे ही सबसे तो किनारा कर लिया मैंने।।
पहाडों में बसे इस हुस्न का कोई न सानी है।
कि फिर से गांव सेअपने जो रिश्ता कर लिया मैंने।।
मेरे महबूब के चर्चे सुने जो चाँद ने इक दिन
तड़प कर बोलता प्रियतम का जा सजदा कर लिया मैंने
मुसीबत यूँ अकेला पा कभी जो घेरे मुझको है।
बता तेरा ठिकाना खुद किनारा कर लिया मैंने
आरती लोहनी