जीना सीखा
दर्द दिल में हमने छुपाकर जीना सीखा
खुद तो रोया सबको हंसाकर जीना सीखा
एक बेहया से थी कभी मोहब्बत हमको
हर खुशी उस पर लुटाकर जीना सीखा
तोड़ दिया दिल छीन ली खुशियां जिसने
उसके आगे गम छुपाकर जीना सीखा
फर्ज की खातिर अपनों की खुशी के लिए
चाहत अपनी भुलाकर यूँ जीना सीखा
हर कोई हंसता था यूँ ही सादगी पर मेरी
सबको आईना दिखाकर जीना सीखा
दोस्त कहते थे कैसे जी पाएगा उस बिन
महफिल फिर भी सजाकर जीना सीखा
वक्त ने भी बार-बार आजमाया मुझको
हर तुफान से टकराकर जीना सीखा
खुदा ने भी फरियाद नहीं सुनी दिल की
अपना रस्ता खुद बनाकर जीना सीखा
“V9द” गिला करे उसकी फितरत में नहीं
गैर को भी गले लगाकर जीना सीखा
स्वरचित
V9द चौहान