-जीना यूं
-जीना यूं
सुगंधमय सुमन से भरे हो अंतर्मन बाग
जब बिन द्वेष, ईर्ष्या का हो दिल राग।
निर्मल उज्ज्वल स्वच्छ श्वेत हो दिमाग
फिर खुशियां फैला देगा तन-मन राग।
सबके मन संग सुर-ताल मिलाकर
अखंड आत्मभाव असीम उर लाकर
परोपकार श्रृद्धा समभाव दिखाकर
महाविभूति सहानुभूति दयाप्रवाहकर।
रहो न मदांध तुच्छ वित्त सेअभिमान कर
अपने सब,स्वयंभू हर सब के पिता जानकर
जीना यूं ,कोई भुला ना पाएं तुम्हें अपना मानकर
– सीमा गुप्ता, अलवर राजस्थान