जीना भी क्या है जीना
** जीना भी क्या है जीना (ग़ज़ल) **
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जीना भी क्या है जीना गर मज़ा नही,
पीना भी क्या है पीना गर गिरा नहीं।
सुलझे जो खुद मन से तो क्या सवाल है,
उलझा क्या ताना – बाना गर सिरा नहीं।
गिरतों को गिरते देखें तो बवाल है,
गिरना भी क्या है गिरना गर उठा नहीं।
तारे नभ में जब भी है टूट कर गिरें,
टूटा भी क्या है टूटा गर जुड़ा नहीं।
मनसीरत ना पीछे करता बढ़ा कदम,
वादा भी क्या है वादा गर निभा नहीं।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)