जीना नही है आसान
****जीना नही है आसान****
************************
अब जीना नही रहा है आसान,
लाशों से भरे पड़े हैं शमशान।
क्या हो गया खुदा के संसार को,
कोई भी रहा नहीं अब कद्रदान।
कब रुकेगा मौतों का काफिला,
कब लेगा कुदरत अपना संज्ञान।
कितनी जानों के हो गए हैं सौदे,
कितना ओर सहना हैं नुकसान।
बेवकूफियों की हदें पार देखकर,
सियाने भी बन चुके अब नादान।
मुल्क में रहा न कोई भी हितेषी,
काम न आ रहा दिया बलिदान।
मनसीरत देखकर है पागल हुआ,
गली और कूचे हो गए हैं सुनसान।
*************************
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)