जीना नहीं आता
***जीना नहीं आता***
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उसे जीना नहीं आता,
मुझे मरना नहीं आता।
गलत जो काम हो जाए,
सही करना नहीं आता।
सदा खाये यहाँ धोखे,
शकल पढ़ना नहीं आता।
हृदय तो प्यार से भरता,
लफ़्ज़ कहना नही आता।
बहुत ही हैं निडर यारों,
कभी डरना नहीं आता।
ग़मों में गमज़दा हम हैं,
अज़ा.सहना नहीं आता।
झड़ी मौजों बहारों की,
मज़ा करना नहीं आता।
रुके हैं पाँव पग बढ़ते,
कदम चलना नहीं आता।
न मनसीरत उठे गिरकर,
अभी उठना नहीं आता।
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सुखविन्दर सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)