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24 Jun 2022 · 1 min read

जीना अब बे मतलब सा लग रहा है।

पेश है पूरी ग़ज़ल…

हर लम्हा आकर यूं ही गुजर रहा है।
जीना अब बे मतलब सा लग रहा है।।1।।

जानें कहां से आया सूखे सेहरा में।
परिंदा प्यासे आब से जो मर रहा है।।2।।

ना जानें कैसी है पैरों में ये लग्जिश।
फिरभी मुसाफ़िर राहपे चल रहा है।।3।।

मकसूद ए मंजिल का पता नही है।
मुद्दतोंसे वो तन्हा सफर कर रहा है।।4।।

कोई रंगी शाम आए मेरे भी हिस्से।
जानें ये दिल कबसे गम सह रहा है।।5।।

इश्क कर रहे है एक मुद्दत से हम।
जानें क्यूं वो अकीदा ना कर रहा है।।6।।

ताज मोहम्मद
लखनऊ

1 Like · 2 Comments · 248 Views
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