जीत
जीत
दलदल से सने बने तुम
पंकज सा खिल जाते हो
सागर की लहरों से तुम
जिद से जीत जाते हो
अदम्य साहस ना हो भयभीत
यही तुम्हारी जीत
उठे सुनामी पीर का
दामिनी भी लगाती कोड़े
बादल भरे आँखों में काजल
चाहे बरखा भी बरसाती ओले
तुम बनालो दुखों को मीत
यही तुम्हारी जीत
चिंता जब जलाती चिता
रूह का कदम बढ़ाते हो
जीवन की हर विपदा में
जब काँटे लहू पी जाते हों
खुशी का तुम गालो गीत
यही तुम्हारी जीत
प्रत्यक्ष निंदा की भीड़ हो
पीठ चुभे कितनों भी खंजर
आँखों में छाये भले तिमिर
सर्प डसे ऐसा हो मंजर
जग का तुम बन जाओ गीत
यही तुम्हारी जीत
सुरेश अजगल्ले”इन्द्र”
जांजगीर चांपा-खरौद