जीत मुश्किल नहीं
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मजबूत हो इरादा तो जीत मुश्किल नहीं
मान जाओ ,आते दुख मुसलस्ल नहीं
बात होती अपनी तो कोई बात नहीं थी
भीड़ कभी निकालती मसालों के हल नहीं
धूप में कोई दो कदम साथ नहीं देता
चांदनी के साए में चले वो दो पल नहीं।
अपनी मक्कारियां को जितना भी छुपा तू
खुदा से मगर ,तू कर सकता कोई छल नहीं
सुरिंदर कौर