जीत का प्रसाद
जीत का प्रसाद हो ।
हार का प्रतिकार हो ।
नभ के भाल पर ,
भानु सा श्रृंगार हो ।
नहीं जीतकर भी ,
जीत का विश्वास हो ।
तोड़कर हर बंधन ,
चलने को तैयार हो ।
राह नई गढ़कर ,
लक्ष्य साकार हो ।
रजः उड़ाते कदमों का ,
लक्ष्य को इंतज़ार हो ।
जीतकर संघर्षो से ,
ज़ीवन पर विश्वास हो ।
जीत का प्रसाद हो ।
हार का प्रतिकार हो ।
…. विवेक दुबे”निश्चल”@…
Blog post 27/5/18