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22 Mar 2019 · 1 min read

जीतने की जिद्द

“जीतने की जिद्द”

बहुत परिश्रम के बाद भी
कई बार था मैं हारा।
लेकिन बन गया था मैं जिद्दी
तब जाके जिंदगी को सवांरा॥

जीत के सिवाय मेरे पास
और नहीं था कोई चारा।
ठोकरें बारंबार लगी मुझे
तब अपने ज़िंदगी को संवारा ॥

ताना मारते थे सब मुझपर
और कहते थे मुझे आवारा।
पर रोज डूबकर उगता था मैं
तभी तो जिंदगी को सवांरा ॥

टीका रहा मैं अपनी बुनियाद पर
असफलता भी मुझसे है हारा।
हारने का डर छोड़ दिया था
तब जाके जिंदगी को सवांरा ॥

कुछ नहीं हासिल करोगे
लोग कहते थे सारा।
पर इन सबको दरकिनार किया
तब मैं जिंदगी को सवांरा।।

बेटा तुम जरूर जीतोगे
माँ का था ये इसारा।
उसके इस मनोबल पर
मैं जिंदगी को है सवांरा ॥

(कुमार अनु ओझा)

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