जीतता वही जो नही रुकता है
मन के मंदिर में बसी एक सूरत,
मुस्कुराती है वह बन मूरत,
हर पल साथ निभाती ,
जग को वह हर्षाती,
बदलता गया समय,
कैसे करें अधर्म में की पराजय ,
खड़ा वह पहन धर्म का चोला,
लेकर पाप से भरा झोला,
जब निर्मल मन होता है,
ज्ञान धर्म की बातें आती है,
विचारों में गंगा बहने लगती है ,
यह जीवन सुधर जाता है,
भटकने के अवसर लाखों आते हैं ,
पथ जो सरल वही कांटे लाता है ,
बिना परिश्रम के फल नहीं मिलता है,
श्रम से पाया फल मीठा होता है ,
पतझड़ के बाद सावन आता है ,
काले मेघ ही पानी बरसाते हैं ,
झुकता वही जो सज्जन होता है ,
जीतता वही जो नहीं रुकता है,
।।।जेपीएल।।।