जीजा जी
तू नाम ले लेना भले, पर जीजा न कहना हाले से,
मैंने किया जब शादी तो, यही शर्त रख दी साले से।।
बदनाम से है हो रहें, जो सार्वभौमिक जीजा जी थे,
हम खेत फिर किस भूमि के जी, जो बचेगें खाले से।।
न देगा न लेगा कुछ, पर फिर भी हम बिक जाएंगे,
और सोचते रह जाएंगे कि, हम थे बहे किस नाले से।।
राष्ट्र जीजा जी को तो, ईडी वालो ने छोड़ा ही नही,
हम तो ठहरे सीधे साधे, “चिद्रूप” फौज़ी के ढाले से।।
©® पांडेय चिदानंद “चिद्रूप”
(सर्वाधिकार सुरक्षित ०९/०२/२०१९ )