जिस रात उस गली में
कवि: शिवदत्त श्रोत्रिय
रौशनी में खो गयी कुछ बात जिस गली में
वो चाँद ढूढ़ने गया जिस रात उस गली में ||
आज झगड़ रहे है आपस में कुछ लुटेरे
कुछ जोगी गुजरे थे एक साथ उस गली में ||
कुछ चिरागो ने जहाँ अपनी रौशनी खो दी
क्यों ढूढ़ता है पागल कयनात उस गली में ||
मौसम बदलते होंगे तुम्हारे शहर में लेकिन
रहती है आँशुओं की बरसात उस गली में ||
सूरज को भी ग्रहण लगता है हर एक साल
बदलेंगे एक दिन जरूर हालत उस गली में ||