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5 Oct 2020 · 1 min read

जिस दिल में हो न प्यार वो दिल दिल नहीं रहा

जिस दिल में हो न प्यार वो दिल दिल नहीं रहा
समझो कि इस समाज के क़ाबिल नहीं रहा

पहले ही कह दिया था कि रखना संभाल कर
अब मुझसे कह रहे हो कि दिल मिल नहीं रहा

गिरता है मुँह के बल भी वही जो अलग चले
दुनिया के रंजोग़म में जो शामिल नहीं रहा

हर पल ज़रा सी बात पे ज़ारी लड़ाइयाँ
इक-दूसरे के प्यार का हासिल नहीं रहा

होना भी चाहिये कि सभी प्यार से जियें
वैसे कभी भी काम ये मुश्किल नहीं रहा

सागर भी सामने है ये कश्ती भी सामने
जिसकी मुझे तलाश थी साहिल नहीं रहा

माना कि क़ाफ़िले से जुदा हो गया हूँ मैं
लेकिन कहो न मुझको कि राहिल नहीं रहा

हर बार ही बहार में खिलता रहा था जो
अब के बरस तो पेड़ वही खिल नहीं रहा

कुछ-कुछ कमी हरेक में होती ज़रूर है
इन्सां कोई जहान में कामिल नहीं रहा

‘आनन्द’ जानता है मुहब्बत की बात को
इतना भी आजकल तो वो जाहिल नहीं रहा

शब्दार्थ:- राहिल=यात्री, कामिल = पूरा/सब/समूचा

– डॉ आनन्द किशोर

2 Likes · 1 Comment · 157 Views
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