जिस तरह
जैसे रात के –
सायों में घिरी,
बिन पतवार-
कोई कश्ती हो रवाँ।
जिस तरह-
चांदनी की,
ओढ़ कर चूनर-
हुई हो रात जवां ।
गल रहा हैदर्द किसी-
गायक के स्वर से,
जल रही चाहत-
घनी तृष्ना के ज्वर से।
जैसे रात के –
सायों में घिरी,
बिन पतवार-
कोई कश्ती हो रवाँ।
जिस तरह-
चांदनी की,
ओढ़ कर चूनर-
हुई हो रात जवां ।
गल रहा हैदर्द किसी-
गायक के स्वर से,
जल रही चाहत-
घनी तृष्ना के ज्वर से।