जिस्म
जिस्म का फर्क है आशुतोष
आदमी बना जिद से
औरत बनी समझौते से ।
आदमी करता रहा जिद
औरत करती रही समझौते
तभी ये हसन है
इंसानियत कर रही
बेपर्दा हो नंगा नाच ।
आओ सनम कुछ बदलाव लाये ,
आदमी को सिखाएं समझौते
और औरत को जिद ।।
जिस्म का फर्क है आशुतोष
आदमी बना जिद से
औरत बनी समझौते से ।
आदमी करता रहा जिद
औरत करती रही समझौते
तभी ये हसन है
इंसानियत कर रही
बेपर्दा हो नंगा नाच ।
आओ सनम कुछ बदलाव लाये ,
आदमी को सिखाएं समझौते
और औरत को जिद ।।