जिस्म से जान जैसे जुदा हो रही है…
जिस्म से जान जैसे जुदा हो रही है,
फूल से जैसे खुशबू विदा ले रही है,
लगता है हमको, अब बस यही,
खुशी हमरी, हमसे खफा हो रही है।
बात हर कोई कहने की होती नहीं,
स्थिति एक जैसी भी रहती नहीं,
वो लम्हे जो यादों के हमने जिये हैं,
आज हर सांस उनको संजो सी रही है।
बहुत दूर तक हमको जाना नहीं था,
इसलिए रहगुजर कोई बनाना नहीं था,
मिले आप हमको हमसे भी बढ़कर,
फिर जरूरत हमें आपकी हो रही है।
अभी दामन उम्मीदों का छोड़ा नहीं है,
रिश्तों से नाता भी तोड़ा नहीं है,
मुमकिन नहीं आपको यूं भुलाना,
दिले-धडकन धड़क दिल को समझा रही है।
✍️ सुनील सुमन।