जिसे तुम राज़ देते हो वही नुक़्सान भी देगा
कभी ख़ुद को गले से तो लगाया जा नहीं सकता
लिखा हो जो मुक़द्दर में मिटाया जा नहीं सकता
जिसे तुम राज़ देते हो वही नुक़्सान भी देगा
यहाँ हर शख़्स को दिल से लगाया जा नहीं सकता
लिखी चीज़ें तो मिट जाएँ ये मुमकिन हो भी सकता है
कभी नक़्श-ए-ख़याली को मिटाया जा नहीं सकता
जहाँ में जो भी है मंसूब वो मंसूब रहता है
जहाज़ों को तो पटरी पर चलाया जा नहीं सकता
तुझे चुनना पड़ेगा अब यहाँ रस्ता हिफ़ाज़त का
हवा में तो चराग़ों को जलाया जा नहीं सकता
वो शहरों के बदलकर नाम नाकामी छुपाते हैं
मगर फिर भी हक़ीक़त को छुपाया जा नहीं सकता
~अंसार एटवी