जिसे चाहकर भी भुलाया न गया
दिल से जिसे चाहकर भी भुलाया न गया।
आँखों में भी उन्हें फिर छुपाया न गया।
महकते गुलो की थी महकती सी खुशबू
उनसे भी ज़ख्म दिल का मिटाया न गया।
खामोशी भी रह रहकर यह एहसास दिलाने लगी
लफ्ज़ों के हुनर से भी जिसे समझाया न गया।
गैर होकर भी वो लगने लगे थे अपने से
अपने वो कैसे थे जिनसे हमें कभी अपनाया न गया।।।
कामनी गुप्ता ***