जिसने दुनियादारी सीखी
चिर परिचित हो या हो अपरिचित, मिले उसे वह मुसकाता है,
सबसे हाँथ मिलाता है वह, जिसने दुनियादारी सीखी।
मुख मंडल पर प्रीति सजाता, प्रतिवेशी से मिलने जाता,
सुंदर उजले शब्द संजोकर, उसका सुख दुख पता लगाता,
उसके दुख के समाचार से वह मन ही मन मुसकाता है,
अपनी खुशी छुपाता है वह, जिसने दुनियादारी सीखी।
अगले दिन की चिंता उसको, इसलिए बचत भी करता है,
नृत्य और संगीतों के प्रति , चाह प्रकट भी करता है,
अपनी वनिता की अभिलाषा पूर्ण अगर कर पाता है,
उसको खुश कर खुश हो जाता वह, जिसने दुनियादारी सीखी।
जब मित्रों से तुलना करता, जब अपने को बेहतर पाता,
हर्षित होता सुध बुध खोता, जब अपनी उपलब्धि आंकता,
सहसा मन – दर्पण निहार भय से व्याकुल हो जाता है,
अंतिम सच से घबराता है वह, जिसने दुनियादारी सीखी।
संजय नारायण