जिसने तोड़े हैं दिल मुहब्बत में
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जिसने नफरत के बीच बोए हैं।
वो ही अपनी ज़मीर खोए हैं।
जिसने तोड़े हैं दिल मुहब्बत में
याखुदा उम्रभर वो रोए हैं।
जिसने पाया मुकाम दहशत से।
वो भी डरते हैं इस मुहब्बत से।
पास आओ गले लगाओ फिर
कत्ल कर दो मगर हां इज्ज़त से।
मुझको जीतोगे तो मगर कैसे
ये मुनाशिब नहीं है नफ़रत से।
आपका मैं गुलाम हो जाऊं
आप कहिए अगर मुहब्बत से।
हमने आंखों में जो संजोए हैं।
सिर्फ उसके लिए ही रोए हैं।
जिसने नफरत के बीच बोए हैं।
वो ही अपनी ज़मीर खोए हैं।
जिसने तोड़े हैं दिल मुहब्बत में
याखुदा उम्रभर वो रोए हैं।…3
©®दीपक झा “रुद्रा”