जिसके लिये वो अंधा हुआ है
डर लगता है ।
किसी को कुछ कहने को।
कुछ समझाने को।
किसे समझाऊँ।
किसे क्या बोलूं।
सोचता ही रह गया आज तक।
डरता रह गया।
कोई नाराज न हो जाय।
हिन्दू को
मुस्लिम को
सवर्ण अवर्ण
ये जाति वो जाति
उसमें भी विविध प्रजाति।
पुरुष महिला
किसके विरोध में बोलूं।
क्यों जहर घोलूँ ।।
जिसे भी बोलो
वह बोलता है
मुझे ही बोलते हो
जरा उसे बोल कर देखो।
जो ऐसा करते वैसा करते
उनसे बोलने में डर लगता है क्या।
अरे उसके बारे में क्यों नही बोलते।
और हां बोल भी नहीं पाओगे।
मगर उनको कैसे समझाऊँ कि
उनको बोलकर ही आया हूँ।
लेकिन धर्म-मजहब के नाम पर
स्वार्थ सिद्ध करने वाले
जानबूझ कर अंधे बनने वालों को
समझाना भी आसान नहीं है।।
क्योंकि जहाँ किसी के स्वार्थ का हनन होता है।
आस्था के नाम पर वो उस शक्ति को भी नकार देता है
जिसके लिये वो अंधा हुआ है।।