Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
14 Mar 2021 · 3 min read

*”जियो और जीने दो”*

“जियो और जीने दो”
एक मछुआरा था जो रोज तालाब के किनारे जाकर रोजाना मछली पकड़ता और मछलियों को तालाब के किनारे पटक दिया करता था जिससे मछलियाँ मर जाती थी और ऐसे ही वह मछुआरा हर रोज यही काम किया करता था।
एक दिन गौतम बुद्ध वहाँ पहुँचे ….उस मछुआरे की यह गतिविधियों को देख उससे पूछा -तुम इन मछलियों को हर दिन पकड़ कर तालाब के किनारे पटक कर मार दिया करते हो भला ऐसा क्यों करते हो ….?
उस मछुआरे ने कहा – पैसे कमाने के लिए रोजी रोटी के लिए पेट पालने के लिए ऐसा करता हूं ताकि परिवार का पालन पोषण हो सके इसके अलावा मेरे पास कोई अन्य साधन उपलब्ध नहीं है मैं क्या करूँ ……! ! !
गौतम बुद्ध ने कहा अगर मैं इन मछलियों को रोज जिंदा ही पकड़ते से ही खरीद लूँ और इनके बदले में तुम्हें दुगुना दाम मूल्य दे दूं तो क्या तुम इन मछलियों को मुझे बेचोगे।
यह बात सुनकर मछुआरा तैयार हो गया और उन मछलियों को गौतम बुद्ध को दोगुने दाम पर बेच देता था और बुद्ध उन मछलियों को फिर से उसी तालाब के पानी में छोड़ देते थे।
मछुआरा रोज मछलियाँ को निकालता गौतम बुद्ध को देता उनसे दुगुना दाम लेता था और बुद्ध उसे पुनः उन मछलियों को पानी मे छोड़ देते थे मछुआरा रोज ये देखकर आखिर गौतम बुद्ध से पूछा – “आप ऐसा क्यों करते हैं मुझसे ही मछलियाँ लेकर उसे फिर से तालाब के पानी मे डाल देते हो”…..? मैं रोज इतनी मेहनत से मछलियों को पकड़ता हूँ और आप वापस उसी तालाब के पानी मे छोड़ देते हैं ऐसा क्यों करते हैं मुझे इसका कारण बतलाइएगा।
इस बात पर गौतम बुद्ध ने कहा -“मैंने तो तुम्हें मछली पकड़ने के लिए दोगुना दाम मूल्य चुका दिया है तुमसे मछलियाँ दोगुना दाम देकर खरीदता हूँ और इसमें तुम्हारा तो फायदा ही है मुझे इससे क्या मिला मैं तो फिर भी घाटे में ही हूँ तो फिर आप इन मछलियों को मुझसे खरीदने के बाद तालाब के पानी में पुनः क्यों छोड़ देते हैं आप इन मछलियों को बेचकर तिगुना चौगुना दाम ले सकते हैं।
तब मछुआरे के प्रश्नो का उत्तर देते हुए कहते हैं कि “मैं इन मछलियों को अपने फायदे के लिए थोड़े ही खरीदता हूँ ….बस मुझे तो इन मछलियों को जीवनदान देने के लिए ही खरीदता हूँ।”
इन सभी मछलियों को तुम इतनी मेहनत से पकड़कर बाहर निकालते हो जैसे ही वो पानी से बाहर निकलती है बेचारी मछलियाँ छटपटाने के बाद मर जाती है और तुम उन्हें बाजार में बेच आते हो तुम्हें सिर्फ उन मरी हुई मछलियों से कुछ पैसे मिल जाते हो और अपनी जीविकोपार्जन कर पेट पालते हो।
मछलियों को ऑक्सीजन पानी से ही मिलता है उससे उसका जीवन क्यों छीन लेते हो…..
अगर ऐसे ही इंसानों के साथ व्यवहार किया जाए तो क्या होगा …..? जीवन में हवा पानी भोजन ऊर्जा न मिले तो वह बेकार निढाल सा ही पड़ा पड़ा एक दिन मर जायेगा आखिर उंसकी क्या वेल्यू कीमत होगी।
या फिर अभी तुम्हारा गला घोंटकर इसी तालाब के पानी में डाल दूँ तो कैसे लगेगा।ये बहुत गहराई सच्चाई व सोचने समझने की बात है।
अब गौतम बुद्ध की सारी बातें मछुआरे के दिमाग पर गहराई तक बैठ गई और जँच गई समझ में आ गई अब मछुआरा उस दिन से मछली पकड़ना छोड़ ही दिया बंद कर दिया।
अब मछुआरा आध्यात्मिक राह पर चलने लगा।कुछ दिनों बाद उसे ईश्वरीय शक्ति का अध्यात्मय प्राप्त हो गया था और आगे चलकर गौतम बुद्ध का अनुयायी शिष्य (चेला) बन गया।
शिक्षा – “किसी को जीवन में तड़फाओ नहीं सबका अपना जीवन है उस जीवन के अपने अपने तरीके से जीने दो जियो और जीने दो”
जीवन में कमाई का जीवनयापन का ऐसा जरिया निकालो जिससे दूसरों को सामने वालों को कोई परेशानियों का सामना करना पड़े।
अगर किसी को किसी तरह की परेशानी हो दिक्कत उठानी पड़ती है तो कोई दूसरा या तीसरा मार्ग चुनकर सीधा सरल उपाय बिना किसी को तंग परेशान करते हुए अपना जीवन सरल सुखी आनंदमयी बनाएं।
“जियो और जीने दो”
जय श्री राम जय जय हनुमान जी
जय श्री कृष्णा राधे राधे।?
शशिकला व्यास

Language: Hindi
1 Comment · 892 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
" धर्म "
Dr. Kishan tandon kranti
2867.*पूर्णिका*
2867.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
जिंदगी
जिंदगी
Bodhisatva kastooriya
बच्चे थिरक रहे हैं आँगन।
बच्चे थिरक रहे हैं आँगन।
लक्ष्मी सिंह
-0 सुविचार 0-
-0 सुविचार 0-
विनोद कृष्ण सक्सेना, पटवारी
शब्द
शब्द
Madhavi Srivastava
बारिश के लिए तरस रहे
बारिश के लिए तरस रहे
Umesh उमेश शुक्ल Shukla
रोजी न रोटी, हैं जीने के लाले।
रोजी न रोटी, हैं जीने के लाले।
सत्य कुमार प्रेमी
◆केवल बुद्धिजीवियों के लिए:-
◆केवल बुद्धिजीवियों के लिए:-
*प्रणय प्रभात*
बैठा हूँ उस राह पर जो मेरी मंजिल नहीं
बैठा हूँ उस राह पर जो मेरी मंजिल नहीं
Pushpraj Anant
सागर
सागर
नूरफातिमा खातून नूरी
रिश्ते
रिश्ते
Mamta Rani
किसी को अगर प्रेरणा मिलती है
किसी को अगर प्रेरणा मिलती है
Harminder Kaur
यहां  ला  के हम भी , मिलाए गए हैं ,
यहां ला के हम भी , मिलाए गए हैं ,
Neelofar Khan
सावन में शिव गुणगान
सावन में शिव गुणगान
ओम प्रकाश श्रीवास्तव
*हम तो हम भी ना बन सके*
*हम तो हम भी ना बन सके*
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
यादों को दिल से मिटाने लगा है वो आजकल
यादों को दिल से मिटाने लगा है वो आजकल
कृष्णकांत गुर्जर
*जो कहता है कहने दो*
*जो कहता है कहने दो*
सुरेन्द्र शर्मा 'शिव'
पिता
पिता
Dr.Priya Soni Khare
शिक्षक
शिक्षक
ओमप्रकाश भारती *ओम्*
मजबूरी
मजबूरी
The_dk_poetry
सिर्फ़ सवालों तक ही
सिर्फ़ सवालों तक ही
पूर्वार्थ
उड़ान ~ एक सरप्राइज
उड़ान ~ एक सरप्राइज
Kanchan Khanna
मैं जानती हूँ तिरा दर खुला है मेरे लिए ।
मैं जानती हूँ तिरा दर खुला है मेरे लिए ।
Neelam Sharma
खुशकिस्मत है कि तू उस परमात्मा की कृति है
खुशकिस्मत है कि तू उस परमात्मा की कृति है
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
जीवन के सारे सुख से मैं वंचित हूँ,
जीवन के सारे सुख से मैं वंचित हूँ,
Shweta Soni
अधूरी सी ज़िंदगी   ....
अधूरी सी ज़िंदगी ....
sushil sarna
!! हे उमां सुनो !!
!! हे उमां सुनो !!
Chunnu Lal Gupta
रामेश्वरम लिंग स्थापना।
रामेश्वरम लिंग स्थापना।
Acharya Rama Nand Mandal
दिल-ए-मज़बूर ।
दिल-ए-मज़बूर ।
Yash Tanha Shayar Hu
Loading...